रही होगी उम्र
यही कोई सत्रह अठरह की
तुम्हे देख
बुनने लगी ख्वाब अनेक……
आँखों ही आँखों मे
लिख दिया
तुम्हे
प्रेमपत्र अनेक…..
हर शब्दो में तुम्हे
अपना शाहिद लिखा
मर मिटने के वादे किए
दीवारों पर उग आए
पौधों सा प्यार लिखा
लिखा न जाने कितने ख्वाब
पर
उन ख्वाबो को
बनाना था एक पांडुलिपी
लो अब तुम भी पढ लो
मेरे ख्वाबो को
जो मैंने कभी
सजाये थे बस तुम्हारे लिए
पढ़ लो उस प्रेम पत्र को
जो लिखा गया था
बस तुम्हारे लिए
साथ भेज रही एक आखरी पत्र
जो प्रेम पत्र से तो नही
पर है उसमें छुपा हुआ
बस मेरा प्रेम तुम्हारे लिए
हाँ नही की उसमे मैंने
तुम्हारी तुलना किसी से
न झीलों से न पत्तो से
उसमें लिख डाले बस
उन सपनों को
जो अब तक अधूरा है
तुम्हारे बिना
देखो मेरे इस आख़री
प्रेम पत्र को जिसमें मैंने
बस लिखा है बस एक शब्द
“समर्पण”
रश्मि
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