संघर्ष से भरी ये दुनिया
चक्रव्यूह में फंसती गयी
ऐसा जाल बुना रब ने
जीवन चक्र में जा पहुंची
चलते चलते थक सी गयी
अलसायी किनारे बैठ गयी
आंचल में भर गयी रागिनी
सुर्यप्रभा जिसे समझ गयी
नेत्रभ़म ये मुझको हुआ
दिशा विपरीत मिलती गयी
चलते चलते थक सी गयी
अलसायी किनारे बैठ गयी
राहों में कांटे मिलते गए
कांटे हटा फूल बिछाती गयी
चुनौती जीवन को समझ
हरपल जीना सीख गयी
चलते चलते थक सी गयी
अलसायी किनारे बैठ गयी