प्यार की राह पर जो मैं चलने लगी,
कभी हँसने तो कभी रोने लगी ।
अनजानी खुशी मन में समाने लगी ,
कभी बिन बात के मैं घबराने लगी ।
प्यार की राह पर जो मैं चलने लगी,
अनजानों में अपनों को ढूँढने लगी।
सिमटी थी, मैं अब बिखरने लगी,
दुनिया की नज़रें भी बदलने लगी।
प्यार की राह पर जो मैं चलने लगी,
अपनों की ताक़ीदें अखरने लगी ।
अजनबी के साथ को तरसने लगी,
मानो ज़िन्दगी, रुख बदलने लगी।
सुभाष
8 Mar 2018प्यार की राह में जो मैं चलने लगी……
सुपर
मैं बस इतना कहूंगा
ये मोहब्बत भी बड़े काम की चीज है बड़े नाम की चीज है……
Upasana Pandey
28 Mar 2018सुबोध जी , आपकी बातों से पूर्णतः सहमत हूँ। पंक्तियों को पसंद करने व मनोबल बढ़ाने के लिए धन्यवाद।