मृगतृष्णा
छोटे -छोटे पाँव ले जन्मा
ले छोटे -छोटे हाथ ।।
छोटे-छोटे कदमों से ही
आंगन था लेता माप ।।
निर्भरता लगी चुभने फिर
रोक-टोक नहीं जंचती थी।
चंचल मन की मर्जी थी ।
आजादी की जल्दी थी ।
गली-मोहल्ले खलिहान वो सारे ।।
दोस्तों के वो छत-चौबारे ।।
भरमाते थे अनुशासन के
राह से भटकाते थे ।।
चीखते थे कानों में सारे
जल्दी-जल्दी बड़े बने हम
जल्द बने परिंदे आजाद ।।
अब जब सब है अपने हाथ ।।
अक्ल समझ का पूरा साथ ।।
मर्ज़ी रोती सुबक-सुबक अब
आजादी जी का जंजाल ।।
ये कैसे बन गए हालात ।।
रास न आया हमें विकास ।।
चंद सिक्कों में खुशी खरीदते ।
चंद सिक्कों में सपने साकार ।
सारा शहर था जो कल अपना ।
अब पता न अपना हाल ।।
उठते-भागते ,गिरते-संभलते ।
दही छोड़ अब मथते छाछ।।
क्या खोया क्या पाया हमने?
बस मृगतृष्णा ही आई हाथ।।
।।मुक्ता शर्मा ।।