हर खुशी है लोगों के दामन में
पर एक हँसी के लिए वक्त नहीं,
दिन-रात दौड़ती दुनिया में
ज़िंदगी के लिए ही वक्त नहीं,
माँ की लोरी का एहसास तो है
पर माँ को माँ कहने का वक्त नहीं,
सारे रिश्तों को तो हम मार चुके
अब उन्हें दफनाने का भी वक्त नहीं,
सारे नाम मोबाइल में हैं,
पर दोस्ती के लिए वक्त नहीं,
गैरों की क्या बात करें
जब अपनों के लिए ही वक्त नहीं,
आंखों में है नींद भरी
पर सोने का वक्त नहीं,
दिल है ग़मों से भरा हुआ
पर रोने का भी वक्त नहीं,
पैसों की दौड़ में ऐसे दौड़े
कि थकने का भी वक्त नहीं,
पराये एहसासों की क्या कद्र करें
जब अपने सपनों के लिए ही वक्त नहीं,
तु ही बता ऐ ज़िंदगी
इस ज़िंदगी का क्या होगा,
कि हर पल मरने वालों को
जीने के लिए भी वक्त नहीं!….
Deepak_UD