मेरी छायाबिंम्ब में तुम्हरा हाथ है
तेरी वजहसे मेरा मेरा अस्तित्व है
हमसे दूर हो आज यह हमें ज्ञात है
पर यह भी कम है तू मेरा अक्स है
बहुत दिन हुए तुमसे रू-ब-रू हुए
मेरी लाख कोशिशों के बाद तुमसे दूर हूं
प्यार मिला सिर्फ तुमसे कभी तेरे साथ
न रह पाया किस्मत ने मेरी इतला न किया
बेबस मैं तन्हा मेरी राते ‘प्रेम’ का वियोग
ने इतना सवारा हमें देखों ग़ज़लकार बना दिया!
– प्रेम प्रकाश
पीएचडी शोधार्थी
रांची विश्वविद्यालय
रांची झारखंड।
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