कदम ताल अपनी मिलाते चले है ||
सरहद की रक्षा करते खड़े है ||
इन्होने ही है शान अपनी बचाया ||
इन्ही के तो हाथो से दुश्मन मरे है ||
तुम रात सोते बिस्तर पर जा के ||
ये रात भर खड़े हो करके ताके ||
इन्ही की दहाड़ो से संकट रुका है ||
इन्ही की बजह से पड़ोसी डरे है ||
इन्होने ही है शान अपनी बचाया ||
इन्ही के तो हाथो से दुश्मन मरे है ||
तुम ठंडी गर्मी से बच कर के रहते ||
ये हर मौसम को हंस कर के सहते ||
ललकार इनकी जग में है जाहिर ||
गर्जने पर आतंकी मूर्क्षित पड़े है ||
इन्होने ही है शान अपनी बचाया ||
इन्ही के तो हाथो से दुश्मन मरे है ||
परिवार के संग तुम ऐश करते ||
इन्ही है जो घर से बहुत दूर रहते ||
इनका लक्ष्य है सुख शांति को लाना ||
इन्ही की बजह से निकम्मे सड़े है ||
इन्होने ही है शान अपनी बचाया ||
इन्ही के तो हाथो से दुश्मन मरे है ||
शम्भू नाथ कैलाशी