नभ में बादल मटक रहे है ||
बढ़ा सूर्य का तेज ||
पशु पक्षी गर्मी से मर रहे ||
पड़ा हुआ अवशेष ||
इंद्रदेव भी हंस के कहते ||
हमको बहुत है खेद ||
नदी सूखे नाले भी सूखे ||
सूख गये झील तालाब ||
ज्येष्ठ मास आग बरसाता ||
खुद मौसम करे आलाप ||
झुलस गए पेड़ पौधे है ||
संकट कर रहा छेद ||
इंद्रदेव भी हंस के कहते ||
हमको बहुत है खेद ||
सने पसीने में श्रमिक है ||
प्यासा शहर अव गाँव ||
राहगीर पथ पर चलने को ||
ढूढ़े पेड़ो की छाँव ||
पानी गया पातळ पुरी को ||
करके मटियामेट ||
इंद्रदेव भी हंस के कहते ||
हमको बहुत है खेद ||
शम्भू नाथ कैलाशी