सुबह सबेरे लिये हाथ में उठते हैं,
प्रथम दरस सब मोबाइल का करते हैं।
परिवारों में बात चीत अब बंद हुई,
रिश्तों की भी डोर इसी से बंधी हुई।
इसी में रूठा और मनाया करते हैं,
प्रथम दरस सब मोबाइल का करते हैं।
सुबह सबेरे लिये हाथ में उठते हैं,
प्रथम दरस सब मोबाइल का करते हैं।
रोज डाक का इंतजार तब करते थे,
डाकिया बाबू के दर्शन भी अब दुर्लभ हैं।
एक फोन की घंटी पे सब दौड़े आते थे,
अपना फोन उठा अब दूर भागते हैं।
इक आभासी दुनियां में अकेले जीते हैं।
प्रथम दरस सब मोबाइल का करते हैं।
सुबह सबेरे लिये हाथ में उठते हैं,
प्रथम दरस सब मोबाइल का करते हैं।
खेल -कूद से दूर हो रहे हैं बच्चे,
सारे खेल इसी में लगते हैं अच्छे।
कथा – कहानी इनको न अब भाते हैं,
मोबाइल न मिले बोर हो जाते हैं।
लूडो -कैरम बीते युग की बाते हैं
प्रथम दरस सब मोबाइल का करते हैं।
सुबह सबेरे लिये हाथ में उठते हैं,
प्रथम दरस सब मोबाइल का करते हैं।
इस तकनीकी युग में इसका साथ है ऐसे,
ज्यों ” अंधे की लाठी ” हो उसके हाथ में जैसे।
पाया है जितना उस से ज्यादा खोया,
फिर भी सबका बना हुआ है हमसाया।
हर उलझन का हल अब इसमें पाते हैं,
प्रथम दरस सब मोबाइल का करते हैं।
सुबह सबेरे लिये हाथ में उठते हैं,
प्रथम दरस सब मोबाइल का करते हैं।
