इस दुनिया से जाने वालों
हो सके तो वापिस लौट आओ
मैं अतृप्त हो गयी हूँ
तुम्हारी आत्मीयता से भरी मीठी रस की फुहार सी बातों
के अभाव में
अखरने लगे हैं मुझे इस संसार के
सारे भोग विलास
यह समुन्दर के किनारे टहलना
ठंडी ठंडी रेत पे चलना
तुम्हारे बिना शीतल पुरवाईयों में बहना
मुझे अच्छा नहीं लगता
यह लोगों की नीरस समुन्दर के खारे पानी सी
बातें
मेरी पपीहे सी प्रेम की प्यास
को बुझा नहीं पा रही
तुम बरस जाओ कहीं आसमान से
एक बारिश की पहली बूंद की तरह
मुझे एक क्षण के लिये कहीं तो
अपनी मौजूदगी का अहसास
करा दो।
मीनल