इन रेत पे बने पदचिन्हों को
ऐ किनारे से टकराती समुन्दर की लहर
तुम मत मिटाना
हो सके तो इनके आंसू पोंछती
बस इनको छूती हुई
वापिस लौट जाना
यह पहले से दुखी हैं
इन्हें और न रुलाना
आसमान की परछाईयों की
बरसाती हो सके तो इनके
सिर पे तान जाना
गम के आंसूओं में डूबे पड़े हैं यह तो
पहले से ही बहुत
हो सके तो इन्हें सहारा देना
सूखने का अवसर देना
अपने पानी की बौछारों
से इन्हें और न भिगोना
और न रुलाना
और न सताना।
मीनल