पुरुष तू है केले का पत्ता
स्त्री तू है गुलाब की पत्ती
गुल होने को है सूरज के प्रकाश की बत्ती
शाम हो चली है
बड़ी तलब लगी है
चलो किचन में चल
बनाते हैं उबलती, खौलती, खदकती
रेल के इंजन सी भाप उगलती
सीटी बजाती
गर्मागर्म टी यानी चाय
खोलते हैं स्टील के डिब्बे
जिसमें रखी है
मीठी मीठी चीनी और दानेदार, कड़क, मसालेदार, खुशबूदार जाफरानी
चाय की पत्ती
एक प्याली चाय
सिप सिप पीते हैं
सारे गम भुलाकर
एक पल में सदिया जीते हैं।
मीनल