यह सफर है नीले पानियों का
सिर पे है धूप
साया है संग लहराती चुनर धानियों का
यह पल है मस्ती का
जहाँ से चले घूमफिर के वहीं लौटकर
आने का
मुसाफिर मैं तन्हा
दिल में भंवर सी हिलोर लेती
एक उम्मीद
स्वप्न खिलते कंवल से
मैं अकेला
न कोई संगी साथी
न भीड़
खुद के लिए जागू
खुद मन्जिल तलाशुं
खुद को संग लेकर चलूं
खुद तक ही फिर वापिस
लौट आऊं
खुद को मैं पाऊं
खुद को मैं जी जाऊं
अब तो यही जीवन का सामान
लगे अपना।
मीनल