बचपन के दिन थे प्यारे वो लौट के फिर न आऐं
चाहे याद उन्हें फिर कर लो चाहे सहेज कर मन में रख लो
क्यों पल पल बड़ती रातें क्यों पल पल बड़ते दिन है
क्यों रोक सके न उस पल को लगते थे बड़े प्यारे
बचपन के दिन थे प्यारे वो लौट के फिर न आयें
वो प्यार कहां से फिर लाएं कभी लड़ते और झगड़ते
कभी लड़ते प्यार भी करते कभी रोते कभी हंसते
वो पेड़ हो गया बुड्ढा जिस पर कभी चढ़ते और उतरते
जैसे उम्र है बड़ती भेदभाव और तेरा मेरा भी करते
बचपन के दिन थे प्यारे वो लौट के फिर न आऐं
हम कूदाफांदी भी करते कभी उछलते कभी गिरते
कभी चोटें भी हम खा जाते चिंता कभी न करते
बस खेल पहल था हमारा पढ़ने का मन न करता
मां को तंग भी करते और मां से झूठ भी बोला करते
बचपन के दिन थे प्यारे वो लौट के फिर न आऐं
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